Thursday, December 6, 2018

अनोखा रिश्ता


अनोखा रिश्ता-1

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शाम का समय था लगभग 7 बजे होंगे ,एक टेबल पर बैठा करन कॉफी पी रहा था चारो ओर लोग बैठे हुए थे हल्की हल्की नीली रोशनी हो रही थी 
करन की उम्र लगभग 30 के आसपास होगी । गोरा रंग , मासूम सा चेहरा ,चेहरे पे हल्की सी मुस्कान हमेशा रहती थी उसे देख कर ऐसा लगता था कि यह मुस्कान झूठी है ,अपने मन को हल्का रखने के लिए सिर्फ दिखावट है । जिस तरह एक बीमार ब्यक्ति को खूबसूरत कपडे पहना दिए गए हों ।
" माफ़ करना करन यार आज फिर लेट हो गयी "
'ये तुम्हरा हर बार का काम फिर माफ़ी क्यूँ मांगती हो'
" कसम से मेरी जान ,आज बहुत ज्यादा जरूरी काम आ गया था"
'अच्छा ! जरा मुझे भी तो बता की कितना जरूरी था तेरा काम'
"अरे वो आकाश है ना , वो मुझे कॉफी के लिए पूँछ रहा था ,बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ा कर आयीं हूँ ।"
'वही आकाश ना जो तुमसे प्यार करता है , बेचारे को क्यूँ परेशान कर रही हो '
"अच्छा , बड़ी फ़िक्र हो रही है उसकी चल ठीक है तेरी बात मान ली , बस एक शर्त पर "
'बोल क्या शर्त है'
"अपनी डायरी दे मुझे पड़ने को"
'मरने दे साले को मुझे क्या पड़ी है'
करन का जबाब सुनकर कविता जोर से हँसने लगी । करन की दोस्ती कविता से लगभग 8 सालो से थी वो कॉलेज एक साथ पड़े थे कविता करन के बारे में उसके परिवार के बारे में सबकुछ जानती सिवाय उसकी डायरी के ।
"अच्छा करन, एक बात बता ये डायरी मुझे क्यूँ नही पड़ने देता , कम से कम कारण तो बता ,जिससे मुझे तसल्ली तो रहे "
'तुझे में मना कर कर के परेशान हो गया पर तू है कि मानती ही नही , क्या करेगी इसे पढ़कर '
"करन प्लीज ,तेरे हाथ जोड़ लूँ "
'हट पागल क्या कर रही है , तू मेरी सबसे अच्छी दोस्त है ऐसा नही करते '
"दोस्त भी कहता है और बात भी नही मानता "
'अरे मेरी प्यारी दोस्त समझा करो ,अगर तुमने इसे पड़ा तो हमारी दोस्ती ख़तम हो जायेगी '
"वो क्यूँ"
'बस ऐसे ही '
कविता और करन वहाँ बहुत देर तक बात करते रहे और फिर चले गए , डायरी का विषय उनका रोज़ का था ,कविता पड़ने के लिए मांगती थी और करन मना कर देता था । लेकिन कविता की समझ में ये नही आता था कि वो उसकी दोस्त वो उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार था फिर एक डायरी को क्यों नही दे रहा था ।
क्रमशः
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Friday, November 30, 2018

क़ातिल निगाहों को उठाइये ज़रा

क़ातिल निग़ाहों को उठाइये ज़रा

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ये बच्चा सच बहुत बोलता है,यहाँ जी नहीं पाएगा
ज़माने के मुताबिक इसे झूठ भी सिखलाइए जरा

बेशुमार खुशी बयाँ कर दी सरे-महफिल आपने 
हर एक खुशी में छिपा दर्द भी दिखलाइए जरा

ये सारे नए वायदों की सरकार है मेरे हुज़ूरे-वाला
एक बार वोट देके देखिए,फिर मुस्कुराइए जरा

कब तक दूसरों के भरोसे इंक़लाब लाई जाएगी
गर ज़ुल्म हुआ है तो खुद ही शोर मचाइए जरा

आप बुजुर्गों की बस्ती में हैं, इतना तो कीजिए
वो कहें कि बहुत हो चुका तो रूक जाइए जरा

कौन कहता है कि अब आपका हुश्न काम का नहीं
आप अपनी कातिल निगाहों को उठाइए जरा 
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-सलिल सरोज

Thursday, November 29, 2018

मेहरी

मेहरी

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चारों तरफ चहल पहल थी लोग इधर उधर अपने काम के लिए जा रहे थे गांव का पूरा बतावरण मन को मोहने वाला था । ठंडी ठंडी हवा चल रही थी , दूसरी ओर बच्चे अपनी जिंदगी के उन हसींन पलो में खोए हुए थे जो बाद में एक कल्पना मात्र रह जाते है । लोग अपने अपने जानवरों को घर की ओर ला रहे थे ।
       उधर एक कोने में मालिक बाबू अपनी चारपाई पर लेटे हुए थे चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ देखि जा सकती थी उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में धन भले ही अधिक ना कमाया हो लेकिन मान सम्मान को भर पाया था गांव का कोई भी ब्यक्ति उधर से होके जाता तो बाबूजी से राम राम करके अवश्य जाता था लेकिन आज बाबूजी राम नाम से ज्यादा  मन की शंका में घिरे हुए थे कोई शंका उन्हें मन ही मन खाये जा रही थी ।
   बाबूजी के परिवार में उनके दो बड़े बेटे श्याम और शेखर , एक बेटी मेहरी और बूढ़ी काकी ।  दोनों बेटों का विवाह हो चूका था और मेहरी भी विवाह योग्य हो चुकी थी । काकी पूरा दिन राम नाम जपती रहती थी  बाबूजी की दोनों पुत्रबधु शायद आधुनिक थी तो बाबूजी और काकी ने इसे अपने भाग्य का खेल मानकर रह गए । अब ना खाने की फ़िक्र थी जब बहु का मन होता तब ही खाना बनता या उनके पति गर्म खाना खाना चाहते हो । लेकिन बाबूजी ने अपने भाग्य के साथ समझौता कर लिया था  अब उन्हें एक ही उलझन थी ' मेहरी' ।
    हर समय उन्हें यही बात अंदर ही अंदर दीमक की तरह खाये जाती थी कि उसकी बेटी का घर कैसा होगा , उसका भाग्य में क्या हमारे जैसे होगा ये सब सोचते सोचते उनकी आँखों से आंसू छलक आते , और ये सब देख काकी भगवान को कोसती रहती ' काश' इतना कहने के बाद काकी हमेशा बाबूजी को देखती और खुद को कुछ कहने से रोक लेती ।
   उस शाम जब बाबूजी अपनी चारपाई पर बैठे थे और विचार कर रहे थे तभी उन्हें ना जाने क्या विचार आया कि बाबूजी के पैर किसी नवयुवक की गति से आगे बढ़ रहे थे उन्हें देख इस लग रहा था कि मानो कोई नवजवान नवजीवन की और अग्रसर हो रहा हो । लेकिन उम्र का तकाजा कहिये या बेटी की शादी की बेड़ियां जिन्होंने बाबूजी के पैरों को बांध रखा था और उनकी गति उस बंधन के कारण मंद होती चली गयी ।
     अपनी चारपाई पर वापस आकर अपनी इस बेबस हालत पर दुखी होने लगे तभी अंदर से खिलखिलाने की आवाजें आने लगी । इन आवाजों ने घी का काम किया , जो आग ना जाने कब से शांत थी आज वो उठने वाली थी  
     शेखर' उन्होंने अपने बड़े बेटे को आवाज लगायी । दो चार बार सुनने के बाद भी उनका बेटा नही आया । उनकी शर्म , लाज और समाज की बेड़ियों ने उन्हें अंदर जाने से रोक रखा था । कुछ देर बाद उनका बेटा हँसता हुआ बाहर आया । अपने बाबूजी के तिलमिलाते चेहरे को देख कर उसकी हँसी रुक गयी ।
" क्या हुआ बाबूजी क्यों चिल्ला रहे थे"
एक पिता के सम्मान को एक तरफ रख अपने रास में ब्यस्त ,बेशर्मी से भरा जबाब देकर शेखर ने उनकी जिंदगी भर के सम्मान को ख़त्म कर दिया था
  बाबूजी अपनी ताकत से खड़े हुए और कुछ देर सोचने के बाद एक जोरदर थप्पड़ अपने बेटे के गाल पे दे दिया ।
  थप्पड़ की आवाज सुनकर शेखर की पत्नी ,श्याम और मेहरी सभी लोग देखते रह गए , जो हाथ जीवन में आज तक न उठा वो आज क्यों ।
 चारो और शंनाटा छा गया था ,बाबूजी का गला भर गया था, एक कोने में कड़ी मेहरी रोये जा रही थी, केवल एक आवाज बाबूजी के गले से निकल पायी और वो भगवान को प्यारे हो गए
" मेहरी "।।

Monday, November 19, 2018

प्रेमवाणी-1

प्रेमवाणी-1

प्रेमवाणी-1
प्रतिदिन सूर्य उदय होने के साथ ही जाग उठते है कुछ सपने ,सपनो के लिए संघर्स, कुछ कहानिया, कुछ इच्छाएँ, कुछ अनकहे संघर्स ,कुछ यात्राएँ और इनके साथ ही जगता है वो प्रेम ..जिसके लिए ह्रदय व्याकुल है , व्याकुल है उस प्रेम मै खोने को |
     लेकिन सभी सपने पूरे नही होते, ना ही हमारे संघर्षो के प्रयास पूरे होते है, सभी कहानिया पूरी नही होती, सभी इच्छाएं पूर्ण नही होती, कुछ संघर्स हम हार जाते है, और हमारी यात्राएँ रह जाती है अधूरी |
अब आपमें से ही कुछ लोग कहेंगे कि सफलता का प्रयास पूर्ण रूप से नही किया गया, तो कुछ कहेंगे कि सपने ज्यादा बड़े थे, कुछ आत्मशक्ति को कम कहेंगे, कुछ लोग इस असफलता का सारा बोझ भाग्य के ऊपर डाल देते है |
        लेकिन इस सब का कारण सिर्फ एक है , कमी है ढाई अक्षर की, कमी है प्रेम की ||
वो प्रेम जो समाज से नही मिला, परिवार से नही मिला , साथी से नही मिला और इस प्रेम कि व्याकुलता ने जन्म दिया असफलता को |
प्रेम,
प्रेम जो ना अब समाज में मिलेगा , ना रिस्तो में , ना किताबो में , ना इंसानों में ....तो आखिर ये प्रेम है क्या ?, ये प्रेम मिलेगा कहाँ ?, क्या मार्ग है प्रेम पाने का ,........यही प्रयास रहेगा आपको समझाने का |
  तो आइये भागी बनिए इस यात्रा का , साक्षी बनिए इस वाणी का , जो मिठास से भरी है .केवल एक बार इसे मन से , दिल से ,प्रेम स्मरण करना होगा इस वाणी को , प्रेमवाणी को ||
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Saturday, November 17, 2018

कोरा कागज़

कोरा कागज़

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कोरा कागज़ हूँ मैं
कुछ भी कहना नहीं,
झील बन जाऊँगा
मुझको बहना नहीं,
मुझसे जो रूठा है मेरा ये दिल,
आज उसको मनाने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।

रास्ता है अगर
वो मुड़ जाएगा,
टूटा सपना है
फिर से जुड़ जाएगा,
अलविदा जिन ग़मों को मैंने कहा,
आज उनको छिपाने का मन का है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।

कुछ खत थे पुराने
कुछ खतो में गुलाब,
मैंने फिर से पढ़े
वो अधूरे जवाब,
जी रही जो मोहब्बत इनके दरमियाँ,
आज उनको जलाने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।

डर गए थे
एक छोटे सवाल से,
रखेंगे कैसे
मेरी यादें संभाल के,
एक कसक जो आँखों से आ गई,
पोंछ कर उसको तेरे रुमाल से
आज फिर मुस्कुराने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।

कोशिशे कितनी करता है
मेरा ये मन,
न जमीं भूल पाती
और न ये गगन,
शायद नहीं कोई फरियाद में,
लिखी जो ग़ज़ल उनकी याद में,
आज उनको सुनाने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।
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-रवि पंवार

Thursday, November 8, 2018

याद कीजिये


याद कीजिये

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आइये आज उनसे मुलाकात कीजिये, लिख रहा हूँ ग़ज़ल, उनको याद कीजिये। इश्क़-ए-हवा की जुल्फों से एक लट फिसल गयी, हम भी फिसल गए थे, याद कीजिये। उंगलियों को मोड़कर उंगलियों ने जब कहा, कि कुछ हो गया था तुमको भी, याद कीजिये। रात थी हसीन और ज़ुस्तज़ू मेरी, बिखर गयी थी चाँदनी, याद कीजिये। धड़कन भी बढ़ रही थी और हम भी बढ़ रहे, तेरे करीब धीरे-धीरे, याद कीजिये। जब चाँद आसमान से घूंघट में आ गया, मैं कितना बेसबर था, याद कीजिये। वो किसकी थी शरारत, मुझसे लिपट गए, ठंडी हवाएं सर्दियों की, याद कीजिये। बीत न जाये रात, कोई रोक लो इसे, वो रात भर की बाते, याद कीजिये। ढल गयी थी रात और उम्र भी मेरी, मैं वही हूँ आज भी, याद कीजिये। हाथ छोड़ कर मेरा, चल दिए कहाँ, तन्हा लगता था डर तुमको, याद कीजिये। थामूंगा हाथ तेरा, जब तक है जिंदगी, वादा किया था जिंदगी से, याद कीजिये। क्या हुई खता कि, रुक गया मेरा सफर, ऐ हमसफ़र मेरे कुछ तो, याद कीजिये। आ जाइये उन आखों में फिर नूर लौट आये, हंसते थे जिनमे तुम, याद कीजिये। रुख्सतें हो गयीं, रुक सकता अब नहीं, आ रहे हैं हम भी बस, याद कीजिये। मोहब्बतें होती नहीं लिबाज़ से "रवि " और होती हैं बस जब ही, जब याद कीजिये।
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Monday, September 24, 2018

सावन बरस रहा हो जैसे


सावन बरस रहा हो जैसे

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बूंद बूंद पानी टपक रहा हो जैसे
सावन रिस रहा हो जैसे

वो बूंद की बेबसी 
बादल की जुदाई हो जैसे
तपते बदन पर वो फ़ुहार
मुझको लपेटे हुए हो जैसे
बूंद बूंद पानी टपक रहा हो जैसे
सावन रिस रहा हो जैसे

बूंदो की फुहार 
तन को लपेटे हुए हो जैसे
धरती के आँचल में
बेरक्त बेबस रातो में
साहिल मिला हो सागर से जैसे

बून्द बून्द पानी टपक रहा हो जैसे
सावन रिस रहा हो जैसे
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Sunday, September 9, 2018

इंतजार था


इन्तजार था

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दूर नजर तक
अधीर फलक तक
वेरंग सा पड़ा था
एक ख्वाब
उसके काले मन में
वेरंग से सपनो पर
इंतज़ार था
उसकी भीगी बारिश का ।।
मन को टटोलते
रंगों की फितरत
बदलते
मानो उतरे
हो कुछ रंग
क्षितिज से अभी अभी
जैसे इंतज़ार था
उसकी भीगी बारिश का ।।
इंतज़ार है
कि हो बारिश सपनो की
मेरे मन की
ऊसर जमीन पर
खुसबू से भर दे
उसके खाली पथ को
जिस पर
इंतज़ार था
उसकी भीगी बारिश का ।।
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-प्रतीक

Saturday, September 1, 2018

जब तुमको देखा करता था

जब तुमको देखा करता था

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बंद आँखों से तुमको देखा था
आज नही वो कल था
वो मेरा बीता कल था
हर बीते कल में तुझको खोजा करता था
जब तुमको देखा करता था

उन श्याह काली रातों में
चहुँओर चाँदनी रातों में
दिल की गहरी आमक में
तुमको खोज करता था
जब तुमको देखा करता था

वो बंद खिड़की
खुले आसमान को दिखाती थी
मेरे सपनो पर चलते हुऐ
मेरी नींद दौड़ा करती थी
तुम्हारी सागर जैसी आँखों में
साहिल बन दौड़ा करता था
जब तुमको देखा करता था
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-PRATEEK

Friday, August 24, 2018

मैं एक लड़की हूँ


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कब हँसना है कब चुप हो जाना सब जानती हूँ मैं, 
लड़की हूँ मैं अपनी मर्यादा जानती हूँ|
कब बैठना है किसके सम्मान में खड़े रहना है अपनी हैसियत की देहलीज पहचानती हूँ, 
क्योंकि लड़की हूँ मैं अपनी मर्यादा जानती हूँ |
मैं एक काठ की कठपुतली हूँ जिसके जज्बातो
की कोई कीमत नही, 
 सूख गये अब तो आँसू भी मेरे, इन आँखों में आँसू लाऊँ कैसे, 
रूठ गयी हैं अब तो किस्मत भी मेरी मुझसे, 
इसे मनाऊँ कैसे |
कितना दुःख पाना है सुख की चाह में जानती हूँ मैं, 
क्योंकि लड़की हूँ मैं, अपनी मर्यादा जानती हूँ मैं |
ना जानने का हक है मुझे घर के बाहर की दुनिया ,घर की देहलीज को ही सबकुछ मानती हूँ मैं, 
लड़की हूँ मैं अपनी मर्यादा जानती हूँ ||
तन्हाई मेरी साथी है, आँसू मेरी किस्मत इन्हें ठुकराऊँ कैसे, 
रूठ गयी मेरी किस्मत मुझसे इसे मनाऊँ कैसे, 
लड़की हूँ मैं अपनी मर्यादा जानती हूँ, 
इस कड़वे सच को ठुकराऊँ कैसे, 
कभी जन्म से पहले ही मार दी जाती हूँ, 
और अगर बच गयी तो दहेज के नाम पर जला दी जाती  हूँ, 
क्योंकि मै एक लड़की हूँ, और अपनी मर्यादा जानती हूँ |
मैं किसी की बेटी बन घर को किलकारियो से गुंजा जाती हूँ, 
फिर भी ना जाने क्यूँ मार दी जाती हूँ, 
कभी किसी की बहन बन अपने  भाई की सुरक्षा की मन्नते मांगती हूँ, और खुद ही दहेज के नाम पर असुरक्षित हो जाती हूँ, 
क्योंकि मै एक लड़की हूँ? 
कहीं पर मै एक माँ हूँ फिर भी धन के लालच में अपने ही बेटे के हाथों मारी जाती हूँ, 
जिस परिवार में कदम रख उसे संवारा हैं, उस परिवार को मुझे दो पल की  खुशियाँ देना लगता अब गवारा है, 
क्योंकि मै एक लड़की हूँ  ?
अपनी मर्यादा जानती हूँ ||
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-नवनीता

Wednesday, July 25, 2018

मेरे आंगन के पेड़ से


मेरे आंगन के पेड़ से

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अठखेलियाँ खाती, अपने केश बिखराती,
रंग बिरंगे फूलों के गहनों से सजी,
एक लता बेवजह लिपट गई
मेरे आँगन के पेड़ से।
 
कहाँ से निकली पता नहीं,
कहाँ रुकेगी पता नहीं,
पर बाँध लेगी अपनी बाँहों में बेसुध,
मोहब्बत सी हो गई जैसे
मेरे आँगन के पेड़ से।
 
डाल से डाल चलने लगे,
पात से पात हिलने लगे,
दो शरीर एक जान से
एक दूसरे मे वो मिलने लगे,
नहीं मिली अगर वजह,
पूछना उनका परिचय,
मेरे आँगन के पेड़ से।
 
कुछ रिश्तों के नाम नहीं होते हैं,
वो मूक होते हैं,
अकल्पनीय किन्तु विस्तृत,
उस असीम प्रेम की तरह
उलझे हुए,
धूप, जाड़े और बारिश में,
मेरे आँगन के पेड़ से।
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-रवि पँवार

Saturday, July 14, 2018

जिस मृग पर कस्तूरी है

जिस मृग पर कस्तूरी है

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मिलना और बिछुड़ना दोनों
जीवन की मजबूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हममें दूरी है।

शाखों से फूलों की बिछुड़न
फूलों से पंखुड़ियों की
आँखों से आँसू की बिछुड़न
होंठों से बाँसुरियों की
तट से नव लहरों की बिछुड़न
पनघट से गागरियों की
सागर से बादल की बिछुड़न
बादल से बीजुरियों की
जंगल जंगल भटकेगा ही
जिस मृग पर कस्तूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हममें दूरी है।

सुबह हुए तो मिले रात-दिन
माना रोज बिछुड़ते हैं
धरती पर आते हैं पंछी
चाहे ऊँचा उड़ते हैं
सीधे सादे रस्ते भी तो
कहीं कहीं पर मुड़ते हैं
अगर हृदय में प्यार रहे तो
टूट टूटकर जुड़ते हैं
हमने देखा है बिछुड़ों को
मिलना बहुत जरूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हममें दूरी है।

- कूअर बेचैन

Wednesday, July 11, 2018

मजा आता है

मजा आता है

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पिघल जाए मोम, तो बाती को जलने में मज़ा आता है,
साथ हो अपने तो सूरज के ढलने में मज़ा आता है,
और चुनौतियों का शौक होता है जिन्हें,
उन्हें पत्थरों पर चलने में मज़ा आता है।
नौरस के दिनों की उफ़
नींद को भी सोने में मज़ा आता है,
और वो खुशी के होते हैं,
हर एक आँसू को रोने में मज़ा आता है।
कायर हैं जो बदनसीब,
उन्हें हर पल डरने में मज़ा आता है,
है मोहब्बत अगर वतन के लिए,
तो हर शहीद को मरने में मज़ा आता हैं।
पागल दरअसल पागल नहीं होता,
उसे खुद से उलझने में मज़ा आता है,
खुदा सा दोस्त मिल जाए अगर,
तो गिर के सम्भलने में मज़ा आता है।
उतार सका क़र्ज़ माँ का अगर
तो मुझको बिकने में मज़ा आता है,
क्या-क्या लिख देती है रवि की कलम,
सच कहूँ तो उसको लिखने में मज़ा आता है।

- रवि पंवार

Wednesday, June 20, 2018

वो कुछ लम्हें...


वो कुछ लम्हें.....

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वो कुछ पल जो बयां नही किये जा सकते
कैसे कह दूँ वो लम्हें भुलाये नही जा सकते
तुम्हारे होठों की वो पहली छुवन
सांसो की वो गरमाहट
तुम्हरी जुल्फों के वो वेराहे रास्ते
जो शायद तुझ तक नही जाते ..
उस रास्ते के वो दर्द बयां नही किये जा सकते
कैसे कह दू वो लम्हे भुलाये नही जा सकते....|

आज यादों ने मुझसे मिलने की कोशिश की है
उन यादों में थोड़ी धुन्दलाहट सी है
तुमको न पाने की बेबसी भी है
यादों की श्याही समय के पन्नो पर
बड़ी लाचार सी लगती है
पन्नो का क्यों मुझमे एकीकार नही किया जा सकता
फिर कैसे कह दू की उन लम्हों को भुलाया नही जा सकता ||

Sunday, April 22, 2018

ये पूछा मत करो

ये मत पूछा करो

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मुझसे होता न बयाँ, ये पूछा मत करो,
राज दिल में है क्या, ये पूछा मत करो।
रात बनके हवा छू लिया था तुम्हें,
ख्वाब था या हक़ीक़त, ये पूछा मत करो।
देखा तुमको तो ये परेशान हो उठी,
इन आँखों की गुफ्तगू, ये पूछा मत करो।
जब नहीं आए तुम हिचकिया आ गई,
पर आई कितनी दफा, ये पूछा मत करो।
जब जानते हो कहेंगे हम "सुभानअल्लाह",
कैसे दिखते हो तुम, ये पूछा मत करो।
तहजीब इतनी कि मुकर जाते हैं हम,
क्या प्यार है हमसे, ये पूछा मत करो।
चल दिया उठ कर कहाँ ये पूछा तो करो,
कर दूंगा मना कि, ये पूछा मत करो।
मैं तो मिर्ज़ा था सिर्फ तेरा रहनुमा,
क्यों ग़ालिब बन गया, ये पूछा मत करो।

-Ravi Panwar

Thursday, April 19, 2018

वो बंद खिड़की


वो बंद खिड़की....?

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वो बंद खिड़की
वो शाम का समय था ज्यादातर लोग अपने अपने घरो से बाहर निकल रहे थे ऐसा लग रहा था मनो उन सब को उस मतवाली पवन ने बुलाया हो और वो सब एक अपनी प्रीयता से मिलने के लिए जा रहे थे ऐसा लग रहा था मानो एक पल की देरी भी इन्हें एक असहनीय वियोग का अनुभव करा रही हो | में भी उस भीड़ में शामिल हो गया | मै चल तो रहा था  पर मानो ऐसा लग रहा था की पवन मुझे अपने साथ कही ले जा रही हो , में अपने बिना गंतव्य की परवाह किये मैने खुद को उसके हवाले कर दिया |
     अभी कुछ समय भी नही गुजरा होगा कि मुझे पवन के झोंको ने मेरे सपनों से बाहर निकाला | मै अपनी वास्तविक दुनिया में आया , मै खुद के चारों तरफ़ देख रहा था ,एकाएक मेरी नजरें पवन के झोंके का पीछा करते हुए एक खिड़की पर गयी | ऐसा लगा मानो दुनिया थम सी गयी हो ..उसकी वो आँखे |
    पर पवन का इरादा कुछ और ही था उसने अपनी अठखेलिय थोड़ी बड़ा दी और अपने हाथो से उसकी बालों की लटों को सवारने लगी ,ऐसा लग रहा था मानो वो उसके स्पर्श से मुझे चिड़ा रही हो ,उसके बाल हवा में लहरा रहे थे उसके गालों की लाली मुझको रिझा रही थी में कुछ पल के लिए उस पल में खो गया और उस मासूमियत सी सूरत में खो गया ...में उसकी पलकों के उठने का इंतज़ार करता रहा पर शायद वो भी पवन के साथ मिली हुई थी मै उस पल को हवा का एक तोफा समझ कर उसे एक याद के रूप में रख लिया |
       अब तो हर रोज़ उस रोज़ का इंतज़ार होने लगा था खुद को बड़ी मुस्किल से याद रख पा रहा था खुद से खुद की जंग से होने लगी थी अगर आँखे बंद करता तो उसकी बंद पलकें आँखे खोलने न देती और अगर आँखे खोलता तो पल पल बेचेनी हो रही थी आखिर खुद ने खुद से एक समजौता किया खुद को “खुद*” के हवाले कर दिया मेने | पर खुद से खुद को हार कर भी जीता हुआ महसूस कर रहा था
  मै हर रोज़ वहा जाने लगा मुझे वो उसी जगह पर बैठी हुई मिलती है ऐसा लगता था मानो वो भी मेरा इंतज़ार कर रही हो | मै उस पल को कैद कर लेना चाहता था उस पल के साथ खो जाना चाहता था उस अनजानी चाहत को पहचान देना चाहता था मै उसे अपना बनाना चाहता था में उसे रोज़ इसी तरह मिलने लगा पर अब बेबसी बडती जा रही थी उसकी पलकों कि खिड़की कब खुलेगी |
     धीरे धीरे एक महिना गुजर गया | उसकी एक मुस्कराहट हर दुःख दूर कर देती थी उसकी दूरी अब सहन नही होती थी हर पल ख्याल आता था उसकी आँखे कैसी होंगी आँखों की वो नीली हया आँखों को सुकून देती थी जब पवन उसके होठों खो छूके गुजरती थी तो दिल में एक सिरहन सी दौड़ जाती थी फिर खुद उसके होठों को अपने होठों पर महसूस करता और उन बंद आँखों के सपनों में खुद को जीवंत महसूस करता |
        वही शाम का समय था सभी लोग फिर से अपनी प्रेयसी से मिलने जा रहे थे मै भी अपनी प्रेयसी से मिलने जाने लगा, पर आज हवाओ का रुख कुछ बदला बदला सा लग रहा था ऐसा लग रहा था मानो वो मुझे आज ले जाना नही चाहती थी पर में खुद खो रोक न पाया और चलने लगा मन में एक अजीब सी बैचेनी हो रही थी वहां पहुँच कर खुद की नजर उठाने की हिम्मत नही हो रही थी खुद को उसकी नजरों का पीछा करने को कहा और नजरे उस बंद खिड़की पर जाके रूक गयी, दिल को दर्द का एहसास हुआ पर आँखों ने बगावत कर दी खुद को ना रोक पायी और बगावत का नीर उन आँखों से बहने लगा | साँसों के साथ बहता दर्द आँखों से मिल रहा था
    फिर खुद को दिलासा दी और उस मकान की सीड़ियाँ चड़ने लगा ..हर एक पल उस पल की याद दिला देता जब उसकी नज़रों से मिलन हुआ था दिल एक अनहोनी की आहत से घबरा जाता | जब उसके कमरे के दरवाजे के पहुंचा तो उसे खोलने की हिम्मत ना हुई | एक झटके के साथ दरबाजा खोला अन्दर का नजारा एक अनहोनी को बयां कर रहा था सब कुछ खाली था बस एक खाली कुर्सी और एक बैसाखी थी जो अनहोनी का संकेत थी फिर नजर उस बंद खिड़की पर गयी, एक ख़त को देखा ,एक डर के साथ उसे खोला जब उसे पड़ने लगा था आँखों ने एक बार फिर बगावत कर दी|
    “इन आँखों की खता को माफ़ कर देना , पर में उन सपनों को नही खोना चाहती जो तुमने मुझे दिए ...जब तुम्हे पता चलता कि मेरे पैर नही है तो शायद तुम मुझे छोड़ देते इस ख्याल से ही में जा रही हूँ अब तक खुद को तो बचा लिया, पर खुद के अंश को कैसे बचाउंगी |
   मेने इस खिड़की से उस दुनिया को देखा है जो बहुत जालिम है हमें जीने का हक़ देना नही चाहती एक ओर आप प्यार की चाहत करते हो दूसरी ओर हमें जीने देना नही चाहते हो .....उस दुनिया में कैसे कदम रखू एक खौफ से भरी हुई है हर पल उन भेडियों की नजरों से बचना पड़ता है हर पल उन जालिमों का साया पीछा करता है
     तुम्हारी मोहब्बत का डर नही है डर तो उस बात का है की अपनी इस मोहब्बत की निशानी को दुनिया में कैसे लाऊंगी , अपनी उस लाड़ली को इन हैवानों से कब तक बचाउंगी ...उसे इस दुनिया में लाने से डर लगता है”
     इस से आगे पड़ ना पाया ,खुद को खुद की नजरों में गिरा हुआ पाया ऐसा लगा मानो उसकी इन बातों का क्या जबाब देता ...उसके लिए इस बंद खिड़की को कैसे खोल पाता क्युकी में भी इसी भेडियों के समाज का हिस्सा हूँ
     आज उस खिड़की खो खोलना चाहता हूँ उसे इस दुनिया से मिलाना चाहता हूँ उसे बताना चाहता हूँ की एक दिन ये लोग जरूर बदलेंगे | पर एक सवाल उस बंद खिड़की खोलने ने रोकता है
“क्या ये लोग बदलेंगे ...?”   
आपकी राय जरूर.......”वो बंद खिड़की”
-  
  -अनिल शर्मा

Wednesday, April 18, 2018

भगवान की खोज

भगवान् की खोज......

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भगवान=विश्वास
क्या आपको लगता है कि आप मंदिर मस्जिद या अन्य जगहों पर खोज सकोगे तो मेरा जबाव है नही...क्योकि हम भगवान को इन जगहों पर अपने स्वार्थ या दुःख के समय पर ही याद करते है.तो आपको क्या लगता है कि भगवान को हम स्वार्थ या दुःख के बदले में ,भगवान की कृपा पा सकते है. तो एक बार फिर मेरा जबाव होगा ..नही I हम भगवान को मंदिर मस्जिद या अन्य जगहों पर खोजने की बजाय हम भगवान को लोगो के दिलो में ,उनके प्यार प्यार में ,लोगो की दुःख के समय की गयी सेवा में ,या फिर बड़ो के आशीर्वाद में खोजे तो सायद हमें भगवान तो ना मिले पर सायद हम भगवान की इच्छा जरूर पूरी कर सकते है

भगवान क्या है ?

विश्वास ही भगवान है.
में आपको एक घटना का अनुभव बताता हु......
एक बार एक छोटा बालक घर से दुखी होकर भगवान की खोज में निगल पड़ा .वो अपने घर से थोड़ी दूर ही पंहुचा होगा की उसे पार्क में एक ब्रद्ध महिला दिखाई दी .वो बहुत उदास थी उसके चेहरे के भाव से पता चल रहा था कि वो कितनी दुखी थी कुछ देर उस महिला को देखने के बाद बालक उसके पास गया और उसकी बगल में जाकर बैठ गया.वो बहुत देर तक इसे ही बैठे दोनों ही एक दुसरे से बात नही कर रहे थे बहुत समय बाद जब बालक को भूक लगी तो उसने अपने छोटे से बैग से ब्रेड निकाली और खाने लगा ..बालक ने देखा की महिला उसकी ओर देख रही है तो बालक को लगा की सायद वो महिला भी भूकी है.तो उसने अपनी एक ब्रेड उस महिला को दे दी .महिला के चेहरे पर थोड़ी सी खुसी छा गयी ..बालक को वो मुस्कान बहुत अच्छी लगी इसलिए उसने अपनी एक दूसरी ब्रेड भी उस महिला को दे दी ...इस बार महिला के चेहरे पर ज्यादा खुसी थी और अंत में बालक ने अपने सारे खाने की चीजे उस महिला को दे दी उन्हें खाकर महिला का चेहरा खुसी से खिल उठा ....और बालक उस चेहरे को देखकर बाहुत खुस हुआ और फिर कुछ देर उन्होंने बात की और दोनों अपने अपने घर चले गए ..जब बालक घर पंहुचा तो उसकी माँ ने पूंचा इतनी देर खा थे बालक ने कहा माँ आज मेने भगवान को देखा वो बहुत सुन्दर है और उसने हंस कर मुझसे बात की .....और जब वो ब्रद्ध महिला अपने घर पहुची तो उसके चेहरे की खुसी देखकर उसकी बहु ने पूछा ,माँ जी आज आप इतनी खुस कैसे हो तो उस महिला ने जबाव दिया बेटा ‘आज मेरी मुलाकात भगवान से हुई वो बहुत अच्छा है उसने मुझे अपना खाना दिया उसने मुझसे बात की और एक बात और वो बहुत छोटा है.......
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Saturday, April 14, 2018

सुकून



सुकून

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हैरान सा परेशान सा,
घर से निकल गया,
सोचा मिल ही जाएगा रास्ता,
जो सभी रास्तों का छोर हो।

मैंने सोचा मेरे ग़मों की सीमा नहीं,
हर जगह ढूंढा पर कहीं भी सुकून नहीं।
फिर स्टेशन की सीढ़ियों से उतरते हुए, काँपते हुए,
फटी सी बुर्शट में खुद को छिपाते हुए,
कोई मेरी तरफ देखने लगा, मानो मैं ही हूँ उसका किनारा।

एकाएक रख दिए मैंने उसके हाथ पर
माँ के दिए परांठे, शायद किसी को तो किनारा मिले,
वो मुस्कुराया, उसके चेहरे की हजार सलवटों पर आराम सा छा गया,
बंजर वसुधा से मिलने मानो सावन आ गया।

वो तेज़ी दिखा रहा था और मैं मंद,
वो अन्न खा रहा था और मैं आनंद,
स्वाद भूख में था, और भूख सुख की,
तृप्त वो भी हो गया, और मेरा दुःख भी।
By- Ravi panwar

Wednesday, April 4, 2018

खुद को भुलाकर देखिये तो...


कभी खुद को भुलाकर देखिये तो

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यहाँ हर दिल में प्यार छिपा है
कभी प्यार की नजरो से देखिये तो,

दुसरो की बाहों में भी वही सुकून है
जरा खुद की बाहें खोलिए तो,

सियासत की लाचारी और दुसरो के जख्म,
जरा सीरिया जेक देखिये तो,

कितना सुकून है इंसानियत में,
जरा राजनीति से बाहर आके देखिये तो,

कोई जाती छोटी, या कोई इंसान बड़ा नही होता
ये सब मानवता के चेहरे है बस
जरा अपना कद घटा के देखिये तो,

यहाँ तो हर कोई अपना है
जरा खुद को भुला कर देखिये तो...
..
BY-ANIL SHARMA

Friday, March 30, 2018

आइना

"आइना...."

वो मुस्कराता हुआ आइना 
उसको देख देख इठलाता है
उसकी उन बिखरी हुई लज्मो को 
व्यथित गीत बनाता है

उसकी गालो की मृदुता देख
खुद से आँख चुराता है
उसके होंठो की वो लाली 
खिलते गुलाब को रिझाती है 

वो मीठी झील सी आँखे 
मेरे दिल की प्यास बुझाती है
मेरा मन कुछ यूँ आईने से 
एक प्रश्न करता जाता है
वो मुस्कराता हुआ आईना 
उसको देख देख क्यू इठलाता है
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Monday, March 5, 2018

वो साथ तुम्हारा चाहता है



वो साथ तुम्हारा चाहता है 

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उस ब्याकुल ,निराश ,विक्षित ह्रदय को,
मृदु भाषाई गीत सुनांना चाहता है 
इस हताश जीवन संग तुम्हारा चाहता है 
वो साथ तुम्हारा चाहता है ||

हैं एक गीत उसके सपनों में तुम्हारा ,
मन उन गीतों की डोर संग उड़ना चाहता है 
वो उस डोर संग बंधन तुम्हारा चाहता है 
वो साथ तुम्हारा चाहता है ||

डर है कहीं डोर जीवन का साथ न छोड़ दे,
ह्रदय उस व्यथा से मचलता है,
इस निराशा से लड़ने को वो संग तुम्हारा चाहता है,
वो साथ तुम्हारा चाहता है ||

कितना मोहक है साथ तुम्हारा ,
पंछि रोज़ ये राग सुनाता है,
कहीं टूट न जाये सपना ,
उन सपनों में वो साथ साथ तुम्हारा चाहता है ,
वो हाथ तुम्हारा चाहता है ||

Friday, February 16, 2018

याद है




याद है 

धीरे धीरे रात दिन दिल का फिसलना याद है
हमको तुम्हारी आशिकी में सिसकना याद है ....
वो दिल का धडकना तेरा ,
वो चेहरे का खिलना तेरा,
हमको तुम्हारे चेहरे का वो शर्माना याद है
धीरे धीरे रात दिन दिल का फिसलना याद है
हमको .........................................
शाम डले छुपना तेरा ,
चाँद टेल निकलना तेरा ,
तुझे देख कर वो चाँद का जलना याद है .
हमको तुम्हारे चेहरे का वो शर्माना याद है.....
धीरे धीरे ....................

Thursday, January 11, 2018

मेरा दिल......





प्यार आपका अब कुछ इस कदर हम पर छा रहा है
मेरा दिल मुझे मेरे महबूब का दिल ए हाल बता रहा है
बड़ा समझाया इस दिल ए नादान को
पर ये तो मस्त गगन में उड़ता ही चला जा रहा है
प्यार आपका अब कुछ इस कदर हम पर छा रहा है
मेरा दिल मुझे मेरे महबूब का दिल ए हाल बता रहा है

चाहता है अब ये दिलबर को अपने सामने हर पल
महसूस करना चाहता है उसकी सांसो को अपनी सांसो में हर पल
इसको भी अब खुद पर कुछ ज्यादा ही एतबार आ रहा है
प्यार अब कुछ इस कदर हम पर छा रहा है
मेरा दिल मुझे मेरे महबूब का हाल ए हाल बता रहा है

कहता है बस कुछ दिन और इंतजार, फिर हम एक हो जायेंगे
जो जो सपने संजोये थे हमने सब के. सब पूरे वो हो जायेगे
अब तो गौरव को भी शिखर का इंतज़ार हो रहा है
प्यार अब कुछ इस कदर हम पर छा रहा है
मेरा दिल मुझे मेरे महबूब का दिल ए हाल बता रहा है

मिले थे जो कभी हमें अनजान बनकर ,वो अब अपने हो जायेंगे
हर कोई शायद अब हमारे प्यार के साथ होगा
दिल को इस गुमान पर गुमान आ रहा है
प्यार अब कुछ इस कदर हम पर छा रहा है
मेरा दिल मुझे मेरे महबूब का दिल ए हाल बता रहा है ।


Tuesday, January 9, 2018

सादगी



सादगी उनमें कितनी थी शायद हम जान ना सके,
मोहम्मद कितनी थी हमें शायद हम जान ना सके, ।

उनका मुस्कुराना हमने देखा
उनका रोना हमने देखा
उनका हमारी हर बात पे हंसना
और खुशी में झूमना देखा,
उनके दिल में दर्द कितना था हम जान  सके,
मोहब्बत कितनी थी हमें शायद हम जान ना सके ।

हमारे लिए कितना तड़पते थे
हाल ए दिल शायद हम ना  समझते थे,
उनकी खुशी की वजह हम थे
उस बजह को ही हम जान ना सके,
मोहब्बत कितनी थी हमें शायद हम जान सके।

कोशिश तो बहुत कि थी उन्हे अपना बनाने की,
हाथ से हाथ जब फिसल गया हम जान ही ना सके,
उन्हे हमसे मोहब्बत कितनी थी शायद हम ही  जान सके,
हमने  उन्हें जान और ना उनकी मोहब्बत को ,
और हम सोचते रहे,


मोहब्बत कितनी थी हमें शायद हम जान ही ना सके ।

वो पहली मुलाकात



वो पहली मुलाक़ात
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"क्या हुआ दोस्त आज इतना बैचैन क्यु हो ,क्या हुआ जो आज आपकी ही धड़कन आपके वश में नहीं है" अपने हालात को देखते हुए मेरे दिमाग ने मेरे दिल से ये प्रश्न किया ।
दिल- सच कहते हो तुम ,शायद आज कुछ खास है या फिर इसे अपने ही गम में बैठने का गम है ।
दिमाग- किस गम कि बात कर रहे हो तो , "वो जो आज से तीन साल पहले" मिला था या फिर कोई और ही गम है ।
      "आज से तीन साल पहले " ये शब्द सुनकर दिल बहुत उदास हो गया ।कुछ कही अनकही तस्वीरें उसके सामने से गुजरने लगी ।उस तस्वीरों में कुछ खास था जिसे देख दिमाग ने भी चलना बंद कर दिया दोनो ही अपने उन हसीन पलों को देख रहे थे वो पल कितने हसीन होंगे जिन्हें याद करके दिल और दिमाग दोनों ही  आनंदित हो रहे । कभी किसी पल खुशी छलकाती तो कभी उदासी ।
         उन दोनों के इस दृश्य ने मुझे अन्दर तक हिला दिया । में एकदम से बैठ गया , मेरी आंखो के सामने वो दृश्य आ गया जब मैने उसके उन कोमल ,हसीन ,और सुन्दर हाथों को स्पर्श किया था मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि वो अभी मेरे हाथो में है उसका वो खूबसूरत चेहरा मेरी आंखो के सामने आ गया और मेरी आंखो से कुछ हसीन यादें बह गई । उन यादों की धारा में, मै भी बहता चला गया मैने खुद को उन यादों के हवाले कर दिया ,क्युकी वो यादें ही मुझे खुशी का एहसास कराती थी ।
      "क्या चाहते हो तुम ,खुद को पाना या उसकी यादों में ही उसकी बाहों के घेरे में खुद को छिपाना" ,एकाएक मेरी यादों ने मुझे झकझोर के पूछा ।
  "वो खूबसूरत चेहरा....एकदम से सामने आ गया और उसमे खो गया ।
शाम का समय था कुछ पुरानी यादो ने घेर रखा था शायद वो ख़ूबसूरत ही रही होगी जिस कारण में उनमे इतना खो गया था ज्यादा कुछ याद भी नही आ रहा था बस एक चेहरा जो बार बार आँखों के सामने आ जाता था पता नही में उसे भूलना नही चाहता था या फिर वो मुझे भूलने नही दे रहा था तभी मेरा ध्यान टूटा ।
        हाल ही की हुई घटनाओ के कारण में किसी से ज्यादा बात नही कारता था मेने बहुत कुछ बदलने के कोशिश की पर शायद अभी समय नही था
   में वंहा से उठकर बाहर चला गया में खुद को खुश देखना चाहता था मुझे क्या पता था कि आज का दिन मेरी जिंदगी में एक ऐसा समय लायेगा जिसे में भूलना ही नही चाहुगा ।में घर से निकल तो गया था पर मेरा मन नही लग रहा था इधर उधर की बाते सोचता रहा पर दिल को सुकून नही मिला ।
       लगभग 4 से 5 बजे के बीच का समय होगा  अप्रैल 2015 का महीना था घूमने के बाद में घर आ गया ""हेल्लो कैसे हो ,क्या में तुमसे बात कर सकती हूँ"   ...।
     मैंने नज़ारे ऊपर उठकर देखा मेरे दिल की धड़कन थम सी गयी मनो किसी की आहट से किसी की नींद टूटने का खतरा हो .में बस उसे एक पल के लिए देखता रह गया जो शायद दिल में बस गया था
    "वो एक खूबसूरत चेहरा"
में अपनी यादों की यादों में इतना खो गया कि मुझे मेरी फिर से झकझोर दिया ।
   "यादों के सहारे जीना मुझे बहुत कठिन सा लग रहा था , पर जब उसने उस पहली मुलाकात में मुझे मुस्करा कर देखा था । उसके उन गुलाबी होंठो ने जब एक दूसरे को चूमा था उसकी पलकों ने खुद को अपनी बाहों में लिया था उसकी हर धड़कन से एक मधुर आवाज एक संगीत की तरह मुझे स्पष्ट सुनाई दे रही थी ।जब उसकी उंगलियों ने मेरी उंगलियों को गले लगाया तो मुझे उसकी हर धड़कन अपने दिल की धड़कन के साथ ही सुनाई देने लगी ।लगा मानो दो दिल एक साथ धड़क रहे हों ।
     " अब तुम ही बताओ इन सब को में कैसे भूल सकता हूं" मैने अपनी यादों से कहा ।
और सोचने लगा कि कैसे भूल जाऊ उसका मुझे गले लगाना , उस एहसास से जीने का एहसास होता है मेरे साथ वो सब पहली बार ही तो हुआ था फिर कैसे भूल जाऊ वो ..
    " पहली मुलाकात"

दिल चाहता है



फिर से वो पल जीने को जी चाहता है ,
दोबारा जीने को वो जिंदगी दिल चाहता है |

बहुत कोशिशो के बाद जीना सीख लिया था ,
समय के मरहम से दर्द को छुपाना सीख लिया था,
कुछ दिनों से लगता है जैसे खुद से मिल गया हूँ मै ,
खुद से खुद को जुदा करना कौन चाहता है ,
फिर से वो पल जीने को जी चाहता है 
दोबारा जीने को को जिन्दगी दिल चाहता है ||

बड़ी बेरुखी से टूट गया वो धागा ,
जो मन को बांधे रखता था ,
बड़ी मासूमियत से छूट गया वो हाथ 
जो हमको थामे रखता था 
उस धागे संग बिछडना कौन  चाहता है 
फिर वो पल जीने को जी चाहता है.
दोबारा जीने को वो जिन्दगी जी चाहता है ||

Wednesday, January 3, 2018

तेरा शाम को टहलना याद है

HD Wallpaper | Background ID:422813

तेरा शाम को टहलना याद है
तुझे देख दिल का खिलना याद है,

यू तो फूँक फूँक कर कदम रखते थे हम ,
पर तेरी चाल पर दिल का फिसलना याद है ,

तेरी खूबसूरती की चर्चा थी उन दिनों,
क़त्ल करने निकलती थी जब सड़को पर,

यूँ तो दीवाने बहुत थे तेरे,
पर मेरे दिल के लिए तेरे दिल का मचलना याद है,
तेरा शाम को टहलना याद है |

सुना था बहुत पत्थर दिल है तू,
फिकर नही थी किसी की तुझे,
पर जब दर्द कभी उठा मुझे तो ,
तेरा मोम की तरह पिघलना याद है;
तेरा शाम को टहलना याद है, |

अजीब नियम थे तेरे प्यार के लिए ,
बहुत नीच सामझती थी तू इसे,
मेरी क्या कशिश थी मेरे प्यार की,
तेरा गिर कर बदलना याद है,
तेरा शाम को टहलना याद है |

बे-लगाम  थी जिन्दगी मेरी ,
मारा मारा फिरता रहता था ,
जब हुई मोहब्बत तुझसे ,
तेरी यादो में डलना याद है ,
तेरा शाम को टहलना याद है, |





अनोखा रिश्ता

अनोखा रिश्ता-1 ---------------------------------------------- शाम का समय था लगभग 7 बजे होंगे ,एक टेबल पर बैठा करन कॉफी पी रहा था चार...