Thursday, December 6, 2018

अनोखा रिश्ता


अनोखा रिश्ता-1

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शाम का समय था लगभग 7 बजे होंगे ,एक टेबल पर बैठा करन कॉफी पी रहा था चारो ओर लोग बैठे हुए थे हल्की हल्की नीली रोशनी हो रही थी 
करन की उम्र लगभग 30 के आसपास होगी । गोरा रंग , मासूम सा चेहरा ,चेहरे पे हल्की सी मुस्कान हमेशा रहती थी उसे देख कर ऐसा लगता था कि यह मुस्कान झूठी है ,अपने मन को हल्का रखने के लिए सिर्फ दिखावट है । जिस तरह एक बीमार ब्यक्ति को खूबसूरत कपडे पहना दिए गए हों ।
" माफ़ करना करन यार आज फिर लेट हो गयी "
'ये तुम्हरा हर बार का काम फिर माफ़ी क्यूँ मांगती हो'
" कसम से मेरी जान ,आज बहुत ज्यादा जरूरी काम आ गया था"
'अच्छा ! जरा मुझे भी तो बता की कितना जरूरी था तेरा काम'
"अरे वो आकाश है ना , वो मुझे कॉफी के लिए पूँछ रहा था ,बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ा कर आयीं हूँ ।"
'वही आकाश ना जो तुमसे प्यार करता है , बेचारे को क्यूँ परेशान कर रही हो '
"अच्छा , बड़ी फ़िक्र हो रही है उसकी चल ठीक है तेरी बात मान ली , बस एक शर्त पर "
'बोल क्या शर्त है'
"अपनी डायरी दे मुझे पड़ने को"
'मरने दे साले को मुझे क्या पड़ी है'
करन का जबाब सुनकर कविता जोर से हँसने लगी । करन की दोस्ती कविता से लगभग 8 सालो से थी वो कॉलेज एक साथ पड़े थे कविता करन के बारे में उसके परिवार के बारे में सबकुछ जानती सिवाय उसकी डायरी के ।
"अच्छा करन, एक बात बता ये डायरी मुझे क्यूँ नही पड़ने देता , कम से कम कारण तो बता ,जिससे मुझे तसल्ली तो रहे "
'तुझे में मना कर कर के परेशान हो गया पर तू है कि मानती ही नही , क्या करेगी इसे पढ़कर '
"करन प्लीज ,तेरे हाथ जोड़ लूँ "
'हट पागल क्या कर रही है , तू मेरी सबसे अच्छी दोस्त है ऐसा नही करते '
"दोस्त भी कहता है और बात भी नही मानता "
'अरे मेरी प्यारी दोस्त समझा करो ,अगर तुमने इसे पड़ा तो हमारी दोस्ती ख़तम हो जायेगी '
"वो क्यूँ"
'बस ऐसे ही '
कविता और करन वहाँ बहुत देर तक बात करते रहे और फिर चले गए , डायरी का विषय उनका रोज़ का था ,कविता पड़ने के लिए मांगती थी और करन मना कर देता था । लेकिन कविता की समझ में ये नही आता था कि वो उसकी दोस्त वो उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार था फिर एक डायरी को क्यों नही दे रहा था ।
क्रमशः
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Friday, November 30, 2018

क़ातिल निगाहों को उठाइये ज़रा

क़ातिल निग़ाहों को उठाइये ज़रा

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ये बच्चा सच बहुत बोलता है,यहाँ जी नहीं पाएगा
ज़माने के मुताबिक इसे झूठ भी सिखलाइए जरा

बेशुमार खुशी बयाँ कर दी सरे-महफिल आपने 
हर एक खुशी में छिपा दर्द भी दिखलाइए जरा

ये सारे नए वायदों की सरकार है मेरे हुज़ूरे-वाला
एक बार वोट देके देखिए,फिर मुस्कुराइए जरा

कब तक दूसरों के भरोसे इंक़लाब लाई जाएगी
गर ज़ुल्म हुआ है तो खुद ही शोर मचाइए जरा

आप बुजुर्गों की बस्ती में हैं, इतना तो कीजिए
वो कहें कि बहुत हो चुका तो रूक जाइए जरा

कौन कहता है कि अब आपका हुश्न काम का नहीं
आप अपनी कातिल निगाहों को उठाइए जरा 
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-सलिल सरोज

Thursday, November 29, 2018

मेहरी

मेहरी

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चारों तरफ चहल पहल थी लोग इधर उधर अपने काम के लिए जा रहे थे गांव का पूरा बतावरण मन को मोहने वाला था । ठंडी ठंडी हवा चल रही थी , दूसरी ओर बच्चे अपनी जिंदगी के उन हसींन पलो में खोए हुए थे जो बाद में एक कल्पना मात्र रह जाते है । लोग अपने अपने जानवरों को घर की ओर ला रहे थे ।
       उधर एक कोने में मालिक बाबू अपनी चारपाई पर लेटे हुए थे चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ देखि जा सकती थी उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में धन भले ही अधिक ना कमाया हो लेकिन मान सम्मान को भर पाया था गांव का कोई भी ब्यक्ति उधर से होके जाता तो बाबूजी से राम राम करके अवश्य जाता था लेकिन आज बाबूजी राम नाम से ज्यादा  मन की शंका में घिरे हुए थे कोई शंका उन्हें मन ही मन खाये जा रही थी ।
   बाबूजी के परिवार में उनके दो बड़े बेटे श्याम और शेखर , एक बेटी मेहरी और बूढ़ी काकी ।  दोनों बेटों का विवाह हो चूका था और मेहरी भी विवाह योग्य हो चुकी थी । काकी पूरा दिन राम नाम जपती रहती थी  बाबूजी की दोनों पुत्रबधु शायद आधुनिक थी तो बाबूजी और काकी ने इसे अपने भाग्य का खेल मानकर रह गए । अब ना खाने की फ़िक्र थी जब बहु का मन होता तब ही खाना बनता या उनके पति गर्म खाना खाना चाहते हो । लेकिन बाबूजी ने अपने भाग्य के साथ समझौता कर लिया था  अब उन्हें एक ही उलझन थी ' मेहरी' ।
    हर समय उन्हें यही बात अंदर ही अंदर दीमक की तरह खाये जाती थी कि उसकी बेटी का घर कैसा होगा , उसका भाग्य में क्या हमारे जैसे होगा ये सब सोचते सोचते उनकी आँखों से आंसू छलक आते , और ये सब देख काकी भगवान को कोसती रहती ' काश' इतना कहने के बाद काकी हमेशा बाबूजी को देखती और खुद को कुछ कहने से रोक लेती ।
   उस शाम जब बाबूजी अपनी चारपाई पर बैठे थे और विचार कर रहे थे तभी उन्हें ना जाने क्या विचार आया कि बाबूजी के पैर किसी नवयुवक की गति से आगे बढ़ रहे थे उन्हें देख इस लग रहा था कि मानो कोई नवजवान नवजीवन की और अग्रसर हो रहा हो । लेकिन उम्र का तकाजा कहिये या बेटी की शादी की बेड़ियां जिन्होंने बाबूजी के पैरों को बांध रखा था और उनकी गति उस बंधन के कारण मंद होती चली गयी ।
     अपनी चारपाई पर वापस आकर अपनी इस बेबस हालत पर दुखी होने लगे तभी अंदर से खिलखिलाने की आवाजें आने लगी । इन आवाजों ने घी का काम किया , जो आग ना जाने कब से शांत थी आज वो उठने वाली थी  
     शेखर' उन्होंने अपने बड़े बेटे को आवाज लगायी । दो चार बार सुनने के बाद भी उनका बेटा नही आया । उनकी शर्म , लाज और समाज की बेड़ियों ने उन्हें अंदर जाने से रोक रखा था । कुछ देर बाद उनका बेटा हँसता हुआ बाहर आया । अपने बाबूजी के तिलमिलाते चेहरे को देख कर उसकी हँसी रुक गयी ।
" क्या हुआ बाबूजी क्यों चिल्ला रहे थे"
एक पिता के सम्मान को एक तरफ रख अपने रास में ब्यस्त ,बेशर्मी से भरा जबाब देकर शेखर ने उनकी जिंदगी भर के सम्मान को ख़त्म कर दिया था
  बाबूजी अपनी ताकत से खड़े हुए और कुछ देर सोचने के बाद एक जोरदर थप्पड़ अपने बेटे के गाल पे दे दिया ।
  थप्पड़ की आवाज सुनकर शेखर की पत्नी ,श्याम और मेहरी सभी लोग देखते रह गए , जो हाथ जीवन में आज तक न उठा वो आज क्यों ।
 चारो और शंनाटा छा गया था ,बाबूजी का गला भर गया था, एक कोने में कड़ी मेहरी रोये जा रही थी, केवल एक आवाज बाबूजी के गले से निकल पायी और वो भगवान को प्यारे हो गए
" मेहरी "।।

Monday, November 19, 2018

प्रेमवाणी-1

प्रेमवाणी-1

प्रेमवाणी-1
प्रतिदिन सूर्य उदय होने के साथ ही जाग उठते है कुछ सपने ,सपनो के लिए संघर्स, कुछ कहानिया, कुछ इच्छाएँ, कुछ अनकहे संघर्स ,कुछ यात्राएँ और इनके साथ ही जगता है वो प्रेम ..जिसके लिए ह्रदय व्याकुल है , व्याकुल है उस प्रेम मै खोने को |
     लेकिन सभी सपने पूरे नही होते, ना ही हमारे संघर्षो के प्रयास पूरे होते है, सभी कहानिया पूरी नही होती, सभी इच्छाएं पूर्ण नही होती, कुछ संघर्स हम हार जाते है, और हमारी यात्राएँ रह जाती है अधूरी |
अब आपमें से ही कुछ लोग कहेंगे कि सफलता का प्रयास पूर्ण रूप से नही किया गया, तो कुछ कहेंगे कि सपने ज्यादा बड़े थे, कुछ आत्मशक्ति को कम कहेंगे, कुछ लोग इस असफलता का सारा बोझ भाग्य के ऊपर डाल देते है |
        लेकिन इस सब का कारण सिर्फ एक है , कमी है ढाई अक्षर की, कमी है प्रेम की ||
वो प्रेम जो समाज से नही मिला, परिवार से नही मिला , साथी से नही मिला और इस प्रेम कि व्याकुलता ने जन्म दिया असफलता को |
प्रेम,
प्रेम जो ना अब समाज में मिलेगा , ना रिस्तो में , ना किताबो में , ना इंसानों में ....तो आखिर ये प्रेम है क्या ?, ये प्रेम मिलेगा कहाँ ?, क्या मार्ग है प्रेम पाने का ,........यही प्रयास रहेगा आपको समझाने का |
  तो आइये भागी बनिए इस यात्रा का , साक्षी बनिए इस वाणी का , जो मिठास से भरी है .केवल एक बार इसे मन से , दिल से ,प्रेम स्मरण करना होगा इस वाणी को , प्रेमवाणी को ||
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Saturday, November 17, 2018

कोरा कागज़

कोरा कागज़

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कोरा कागज़ हूँ मैं
कुछ भी कहना नहीं,
झील बन जाऊँगा
मुझको बहना नहीं,
मुझसे जो रूठा है मेरा ये दिल,
आज उसको मनाने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।

रास्ता है अगर
वो मुड़ जाएगा,
टूटा सपना है
फिर से जुड़ जाएगा,
अलविदा जिन ग़मों को मैंने कहा,
आज उनको छिपाने का मन का है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।

कुछ खत थे पुराने
कुछ खतो में गुलाब,
मैंने फिर से पढ़े
वो अधूरे जवाब,
जी रही जो मोहब्बत इनके दरमियाँ,
आज उनको जलाने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।

डर गए थे
एक छोटे सवाल से,
रखेंगे कैसे
मेरी यादें संभाल के,
एक कसक जो आँखों से आ गई,
पोंछ कर उसको तेरे रुमाल से
आज फिर मुस्कुराने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।

कोशिशे कितनी करता है
मेरा ये मन,
न जमीं भूल पाती
और न ये गगन,
शायद नहीं कोई फरियाद में,
लिखी जो ग़ज़ल उनकी याद में,
आज उनको सुनाने का मन है मेरा,
उन्हें भूल जाने का मन है मेरा।
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-रवि पंवार

Thursday, November 8, 2018

याद कीजिये


याद कीजिये

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आइये आज उनसे मुलाकात कीजिये, लिख रहा हूँ ग़ज़ल, उनको याद कीजिये। इश्क़-ए-हवा की जुल्फों से एक लट फिसल गयी, हम भी फिसल गए थे, याद कीजिये। उंगलियों को मोड़कर उंगलियों ने जब कहा, कि कुछ हो गया था तुमको भी, याद कीजिये। रात थी हसीन और ज़ुस्तज़ू मेरी, बिखर गयी थी चाँदनी, याद कीजिये। धड़कन भी बढ़ रही थी और हम भी बढ़ रहे, तेरे करीब धीरे-धीरे, याद कीजिये। जब चाँद आसमान से घूंघट में आ गया, मैं कितना बेसबर था, याद कीजिये। वो किसकी थी शरारत, मुझसे लिपट गए, ठंडी हवाएं सर्दियों की, याद कीजिये। बीत न जाये रात, कोई रोक लो इसे, वो रात भर की बाते, याद कीजिये। ढल गयी थी रात और उम्र भी मेरी, मैं वही हूँ आज भी, याद कीजिये। हाथ छोड़ कर मेरा, चल दिए कहाँ, तन्हा लगता था डर तुमको, याद कीजिये। थामूंगा हाथ तेरा, जब तक है जिंदगी, वादा किया था जिंदगी से, याद कीजिये। क्या हुई खता कि, रुक गया मेरा सफर, ऐ हमसफ़र मेरे कुछ तो, याद कीजिये। आ जाइये उन आखों में फिर नूर लौट आये, हंसते थे जिनमे तुम, याद कीजिये। रुख्सतें हो गयीं, रुक सकता अब नहीं, आ रहे हैं हम भी बस, याद कीजिये। मोहब्बतें होती नहीं लिबाज़ से "रवि " और होती हैं बस जब ही, जब याद कीजिये।
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Monday, September 24, 2018

सावन बरस रहा हो जैसे


सावन बरस रहा हो जैसे

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बूंद बूंद पानी टपक रहा हो जैसे
सावन रिस रहा हो जैसे

वो बूंद की बेबसी 
बादल की जुदाई हो जैसे
तपते बदन पर वो फ़ुहार
मुझको लपेटे हुए हो जैसे
बूंद बूंद पानी टपक रहा हो जैसे
सावन रिस रहा हो जैसे

बूंदो की फुहार 
तन को लपेटे हुए हो जैसे
धरती के आँचल में
बेरक्त बेबस रातो में
साहिल मिला हो सागर से जैसे

बून्द बून्द पानी टपक रहा हो जैसे
सावन रिस रहा हो जैसे
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अनोखा रिश्ता

अनोखा रिश्ता-1 ---------------------------------------------- शाम का समय था लगभग 7 बजे होंगे ,एक टेबल पर बैठा करन कॉफी पी रहा था चार...