Thursday, November 8, 2018

याद कीजिये


याद कीजिये

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आइये आज उनसे मुलाकात कीजिये, लिख रहा हूँ ग़ज़ल, उनको याद कीजिये। इश्क़-ए-हवा की जुल्फों से एक लट फिसल गयी, हम भी फिसल गए थे, याद कीजिये। उंगलियों को मोड़कर उंगलियों ने जब कहा, कि कुछ हो गया था तुमको भी, याद कीजिये। रात थी हसीन और ज़ुस्तज़ू मेरी, बिखर गयी थी चाँदनी, याद कीजिये। धड़कन भी बढ़ रही थी और हम भी बढ़ रहे, तेरे करीब धीरे-धीरे, याद कीजिये। जब चाँद आसमान से घूंघट में आ गया, मैं कितना बेसबर था, याद कीजिये। वो किसकी थी शरारत, मुझसे लिपट गए, ठंडी हवाएं सर्दियों की, याद कीजिये। बीत न जाये रात, कोई रोक लो इसे, वो रात भर की बाते, याद कीजिये। ढल गयी थी रात और उम्र भी मेरी, मैं वही हूँ आज भी, याद कीजिये। हाथ छोड़ कर मेरा, चल दिए कहाँ, तन्हा लगता था डर तुमको, याद कीजिये। थामूंगा हाथ तेरा, जब तक है जिंदगी, वादा किया था जिंदगी से, याद कीजिये। क्या हुई खता कि, रुक गया मेरा सफर, ऐ हमसफ़र मेरे कुछ तो, याद कीजिये। आ जाइये उन आखों में फिर नूर लौट आये, हंसते थे जिनमे तुम, याद कीजिये। रुख्सतें हो गयीं, रुक सकता अब नहीं, आ रहे हैं हम भी बस, याद कीजिये। मोहब्बतें होती नहीं लिबाज़ से "रवि " और होती हैं बस जब ही, जब याद कीजिये।
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