Thursday, November 29, 2018

मेहरी

मेहरी

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चारों तरफ चहल पहल थी लोग इधर उधर अपने काम के लिए जा रहे थे गांव का पूरा बतावरण मन को मोहने वाला था । ठंडी ठंडी हवा चल रही थी , दूसरी ओर बच्चे अपनी जिंदगी के उन हसींन पलो में खोए हुए थे जो बाद में एक कल्पना मात्र रह जाते है । लोग अपने अपने जानवरों को घर की ओर ला रहे थे ।
       उधर एक कोने में मालिक बाबू अपनी चारपाई पर लेटे हुए थे चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ देखि जा सकती थी उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी में धन भले ही अधिक ना कमाया हो लेकिन मान सम्मान को भर पाया था गांव का कोई भी ब्यक्ति उधर से होके जाता तो बाबूजी से राम राम करके अवश्य जाता था लेकिन आज बाबूजी राम नाम से ज्यादा  मन की शंका में घिरे हुए थे कोई शंका उन्हें मन ही मन खाये जा रही थी ।
   बाबूजी के परिवार में उनके दो बड़े बेटे श्याम और शेखर , एक बेटी मेहरी और बूढ़ी काकी ।  दोनों बेटों का विवाह हो चूका था और मेहरी भी विवाह योग्य हो चुकी थी । काकी पूरा दिन राम नाम जपती रहती थी  बाबूजी की दोनों पुत्रबधु शायद आधुनिक थी तो बाबूजी और काकी ने इसे अपने भाग्य का खेल मानकर रह गए । अब ना खाने की फ़िक्र थी जब बहु का मन होता तब ही खाना बनता या उनके पति गर्म खाना खाना चाहते हो । लेकिन बाबूजी ने अपने भाग्य के साथ समझौता कर लिया था  अब उन्हें एक ही उलझन थी ' मेहरी' ।
    हर समय उन्हें यही बात अंदर ही अंदर दीमक की तरह खाये जाती थी कि उसकी बेटी का घर कैसा होगा , उसका भाग्य में क्या हमारे जैसे होगा ये सब सोचते सोचते उनकी आँखों से आंसू छलक आते , और ये सब देख काकी भगवान को कोसती रहती ' काश' इतना कहने के बाद काकी हमेशा बाबूजी को देखती और खुद को कुछ कहने से रोक लेती ।
   उस शाम जब बाबूजी अपनी चारपाई पर बैठे थे और विचार कर रहे थे तभी उन्हें ना जाने क्या विचार आया कि बाबूजी के पैर किसी नवयुवक की गति से आगे बढ़ रहे थे उन्हें देख इस लग रहा था कि मानो कोई नवजवान नवजीवन की और अग्रसर हो रहा हो । लेकिन उम्र का तकाजा कहिये या बेटी की शादी की बेड़ियां जिन्होंने बाबूजी के पैरों को बांध रखा था और उनकी गति उस बंधन के कारण मंद होती चली गयी ।
     अपनी चारपाई पर वापस आकर अपनी इस बेबस हालत पर दुखी होने लगे तभी अंदर से खिलखिलाने की आवाजें आने लगी । इन आवाजों ने घी का काम किया , जो आग ना जाने कब से शांत थी आज वो उठने वाली थी  
     शेखर' उन्होंने अपने बड़े बेटे को आवाज लगायी । दो चार बार सुनने के बाद भी उनका बेटा नही आया । उनकी शर्म , लाज और समाज की बेड़ियों ने उन्हें अंदर जाने से रोक रखा था । कुछ देर बाद उनका बेटा हँसता हुआ बाहर आया । अपने बाबूजी के तिलमिलाते चेहरे को देख कर उसकी हँसी रुक गयी ।
" क्या हुआ बाबूजी क्यों चिल्ला रहे थे"
एक पिता के सम्मान को एक तरफ रख अपने रास में ब्यस्त ,बेशर्मी से भरा जबाब देकर शेखर ने उनकी जिंदगी भर के सम्मान को ख़त्म कर दिया था
  बाबूजी अपनी ताकत से खड़े हुए और कुछ देर सोचने के बाद एक जोरदर थप्पड़ अपने बेटे के गाल पे दे दिया ।
  थप्पड़ की आवाज सुनकर शेखर की पत्नी ,श्याम और मेहरी सभी लोग देखते रह गए , जो हाथ जीवन में आज तक न उठा वो आज क्यों ।
 चारो और शंनाटा छा गया था ,बाबूजी का गला भर गया था, एक कोने में कड़ी मेहरी रोये जा रही थी, केवल एक आवाज बाबूजी के गले से निकल पायी और वो भगवान को प्यारे हो गए
" मेहरी "।।

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