Wednesday, July 25, 2018

मेरे आंगन के पेड़ से


मेरे आंगन के पेड़ से

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अठखेलियाँ खाती, अपने केश बिखराती,
रंग बिरंगे फूलों के गहनों से सजी,
एक लता बेवजह लिपट गई
मेरे आँगन के पेड़ से।
 
कहाँ से निकली पता नहीं,
कहाँ रुकेगी पता नहीं,
पर बाँध लेगी अपनी बाँहों में बेसुध,
मोहब्बत सी हो गई जैसे
मेरे आँगन के पेड़ से।
 
डाल से डाल चलने लगे,
पात से पात हिलने लगे,
दो शरीर एक जान से
एक दूसरे मे वो मिलने लगे,
नहीं मिली अगर वजह,
पूछना उनका परिचय,
मेरे आँगन के पेड़ से।
 
कुछ रिश्तों के नाम नहीं होते हैं,
वो मूक होते हैं,
अकल्पनीय किन्तु विस्तृत,
उस असीम प्रेम की तरह
उलझे हुए,
धूप, जाड़े और बारिश में,
मेरे आँगन के पेड़ से।
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-रवि पँवार

Saturday, July 14, 2018

जिस मृग पर कस्तूरी है

जिस मृग पर कस्तूरी है

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मिलना और बिछुड़ना दोनों
जीवन की मजबूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हममें दूरी है।

शाखों से फूलों की बिछुड़न
फूलों से पंखुड़ियों की
आँखों से आँसू की बिछुड़न
होंठों से बाँसुरियों की
तट से नव लहरों की बिछुड़न
पनघट से गागरियों की
सागर से बादल की बिछुड़न
बादल से बीजुरियों की
जंगल जंगल भटकेगा ही
जिस मृग पर कस्तूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हममें दूरी है।

सुबह हुए तो मिले रात-दिन
माना रोज बिछुड़ते हैं
धरती पर आते हैं पंछी
चाहे ऊँचा उड़ते हैं
सीधे सादे रस्ते भी तो
कहीं कहीं पर मुड़ते हैं
अगर हृदय में प्यार रहे तो
टूट टूटकर जुड़ते हैं
हमने देखा है बिछुड़ों को
मिलना बहुत जरूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हममें दूरी है।

- कूअर बेचैन

Wednesday, July 11, 2018

मजा आता है

मजा आता है

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पिघल जाए मोम, तो बाती को जलने में मज़ा आता है,
साथ हो अपने तो सूरज के ढलने में मज़ा आता है,
और चुनौतियों का शौक होता है जिन्हें,
उन्हें पत्थरों पर चलने में मज़ा आता है।
नौरस के दिनों की उफ़
नींद को भी सोने में मज़ा आता है,
और वो खुशी के होते हैं,
हर एक आँसू को रोने में मज़ा आता है।
कायर हैं जो बदनसीब,
उन्हें हर पल डरने में मज़ा आता है,
है मोहब्बत अगर वतन के लिए,
तो हर शहीद को मरने में मज़ा आता हैं।
पागल दरअसल पागल नहीं होता,
उसे खुद से उलझने में मज़ा आता है,
खुदा सा दोस्त मिल जाए अगर,
तो गिर के सम्भलने में मज़ा आता है।
उतार सका क़र्ज़ माँ का अगर
तो मुझको बिकने में मज़ा आता है,
क्या-क्या लिख देती है रवि की कलम,
सच कहूँ तो उसको लिखने में मज़ा आता है।

- रवि पंवार

अनोखा रिश्ता

अनोखा रिश्ता-1 ---------------------------------------------- शाम का समय था लगभग 7 बजे होंगे ,एक टेबल पर बैठा करन कॉफी पी रहा था चार...