Monday, September 24, 2018

सावन बरस रहा हो जैसे


सावन बरस रहा हो जैसे

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बूंद बूंद पानी टपक रहा हो जैसे
सावन रिस रहा हो जैसे

वो बूंद की बेबसी 
बादल की जुदाई हो जैसे
तपते बदन पर वो फ़ुहार
मुझको लपेटे हुए हो जैसे
बूंद बूंद पानी टपक रहा हो जैसे
सावन रिस रहा हो जैसे

बूंदो की फुहार 
तन को लपेटे हुए हो जैसे
धरती के आँचल में
बेरक्त बेबस रातो में
साहिल मिला हो सागर से जैसे

बून्द बून्द पानी टपक रहा हो जैसे
सावन रिस रहा हो जैसे
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