Tuesday, January 9, 2018

सादगी



सादगी उनमें कितनी थी शायद हम जान ना सके,
मोहम्मद कितनी थी हमें शायद हम जान ना सके, ।

उनका मुस्कुराना हमने देखा
उनका रोना हमने देखा
उनका हमारी हर बात पे हंसना
और खुशी में झूमना देखा,
उनके दिल में दर्द कितना था हम जान  सके,
मोहब्बत कितनी थी हमें शायद हम जान ना सके ।

हमारे लिए कितना तड़पते थे
हाल ए दिल शायद हम ना  समझते थे,
उनकी खुशी की वजह हम थे
उस बजह को ही हम जान ना सके,
मोहब्बत कितनी थी हमें शायद हम जान सके।

कोशिश तो बहुत कि थी उन्हे अपना बनाने की,
हाथ से हाथ जब फिसल गया हम जान ही ना सके,
उन्हे हमसे मोहब्बत कितनी थी शायद हम ही  जान सके,
हमने  उन्हें जान और ना उनकी मोहब्बत को ,
और हम सोचते रहे,


मोहब्बत कितनी थी हमें शायद हम जान ही ना सके ।

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