"आइना...."
वो मुस्कराता हुआ आइना
उसको देख देख इठलाता है
उसकी उन बिखरी हुई लज्मो को
व्यथित गीत बनाता है
उसकी गालो की मृदुता देख
खुद से आँख चुराता है
उसके होंठो की वो लाली
खिलते गुलाब को रिझाती है
वो मीठी झील सी आँखे
मेरे दिल की प्यास बुझाती है
मेरा मन कुछ यूँ आईने से
एक प्रश्न करता जाता है
वो मुस्कराता हुआ आईना
उसको देख देख क्यू इठलाता है
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