वो बंद खिड़की....?
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वो बंद खिड़की
वो शाम का समय था
ज्यादातर लोग अपने अपने घरो से बाहर निकल रहे थे ऐसा लग रहा था मनो उन सब को उस
मतवाली पवन ने बुलाया हो और वो सब एक अपनी प्रीयता से मिलने के लिए जा रहे थे ऐसा
लग रहा था मानो एक पल की देरी भी इन्हें एक असहनीय वियोग का अनुभव करा रही हो |
में भी उस भीड़ में शामिल हो गया | मै चल तो रहा था पर मानो ऐसा लग रहा था की पवन मुझे अपने साथ
कही ले जा रही हो , में अपने बिना गंतव्य की परवाह किये मैने खुद को उसके हवाले कर
दिया |
अभी कुछ समय भी नही गुजरा होगा कि मुझे पवन
के झोंको ने मेरे सपनों से बाहर निकाला | मै अपनी वास्तविक दुनिया में आया , मै
खुद के चारों तरफ़ देख रहा था ,एकाएक मेरी नजरें पवन के झोंके का पीछा करते हुए एक
खिड़की पर गयी | ऐसा लगा मानो दुनिया थम सी गयी हो ..उसकी वो आँखे |
पर पवन का इरादा कुछ और ही था उसने अपनी
अठखेलिय थोड़ी बड़ा दी और अपने हाथो से उसकी बालों की लटों को सवारने लगी ,ऐसा लग
रहा था मानो वो उसके स्पर्श से मुझे चिड़ा रही हो ,उसके बाल हवा में लहरा रहे थे
उसके गालों की लाली मुझको रिझा रही थी में कुछ पल के लिए उस पल में खो गया और उस
मासूमियत सी सूरत में खो गया ...में उसकी पलकों के उठने का इंतज़ार करता रहा पर
शायद वो भी पवन के साथ मिली हुई थी मै उस पल को हवा का एक तोफा समझ कर उसे एक याद
के रूप में रख लिया |
अब तो हर रोज़ उस रोज़ का इंतज़ार होने लगा
था खुद को बड़ी मुस्किल से याद रख पा रहा था खुद से खुद की जंग से होने लगी थी अगर
आँखे बंद करता तो उसकी बंद पलकें आँखे खोलने न देती और अगर आँखे खोलता तो पल पल
बेचेनी हो रही थी आखिर खुद ने खुद से एक समजौता किया खुद को “खुद*” के हवाले कर
दिया मेने | पर खुद से खुद को हार कर भी जीता हुआ महसूस कर रहा था
मै हर रोज़ वहा जाने लगा मुझे वो उसी जगह पर
बैठी हुई मिलती है ऐसा लगता था मानो वो भी मेरा इंतज़ार कर रही हो | मै उस पल को
कैद कर लेना चाहता था उस पल के साथ खो जाना चाहता था उस अनजानी चाहत को पहचान देना
चाहता था मै उसे अपना बनाना चाहता था में उसे रोज़ इसी तरह मिलने लगा पर अब बेबसी
बडती जा रही थी उसकी पलकों कि खिड़की कब खुलेगी |
धीरे धीरे एक महिना गुजर गया | उसकी एक
मुस्कराहट हर दुःख दूर कर देती थी उसकी दूरी अब सहन नही होती थी हर पल ख्याल आता
था उसकी आँखे कैसी होंगी आँखों की वो नीली हया आँखों को सुकून देती थी जब पवन उसके
होठों खो छूके गुजरती थी तो दिल में एक सिरहन सी दौड़ जाती थी फिर खुद उसके होठों
को अपने होठों पर महसूस करता और उन बंद आँखों के सपनों में खुद को जीवंत महसूस
करता |
वही शाम का समय था सभी लोग फिर से अपनी
प्रेयसी से मिलने जा रहे थे मै भी अपनी प्रेयसी से मिलने जाने लगा, पर आज हवाओ का
रुख कुछ बदला बदला सा लग रहा था ऐसा लग रहा था मानो वो मुझे आज ले जाना नही चाहती
थी पर में खुद खो रोक न पाया और चलने लगा मन में एक अजीब सी बैचेनी हो रही थी वहां
पहुँच कर खुद की नजर उठाने की हिम्मत नही हो रही थी खुद को उसकी नजरों का पीछा करने
को कहा और नजरे उस बंद खिड़की पर जाके रूक गयी, दिल को दर्द का एहसास हुआ पर आँखों
ने बगावत कर दी खुद को ना रोक पायी और बगावत का नीर उन आँखों से बहने लगा | साँसों
के साथ बहता दर्द आँखों से मिल रहा था
फिर खुद को दिलासा दी और उस मकान की सीड़ियाँ
चड़ने लगा ..हर एक पल उस पल की याद दिला देता जब उसकी नज़रों से मिलन हुआ था दिल एक
अनहोनी की आहत से घबरा जाता | जब उसके कमरे के दरवाजे के पहुंचा तो उसे खोलने की
हिम्मत ना हुई | एक झटके के साथ दरबाजा खोला अन्दर का नजारा एक अनहोनी को बयां कर
रहा था सब कुछ खाली था बस एक खाली कुर्सी और एक बैसाखी थी जो अनहोनी का संकेत थी
फिर नजर उस बंद खिड़की पर गयी, एक ख़त को देखा ,एक डर के साथ उसे खोला जब उसे पड़ने
लगा था आँखों ने एक बार फिर बगावत कर दी|
“इन आँखों की खता को माफ़ कर देना , पर में उन
सपनों को नही खोना चाहती जो तुमने मुझे दिए ...जब तुम्हे पता चलता कि मेरे पैर नही
है तो शायद तुम मुझे छोड़ देते इस ख्याल से ही में जा रही हूँ अब तक खुद को तो बचा
लिया, पर खुद के अंश को कैसे बचाउंगी |
मेने इस खिड़की से उस दुनिया को देखा है जो
बहुत जालिम है हमें जीने का हक़ देना नही चाहती एक ओर आप प्यार की चाहत करते हो
दूसरी ओर हमें जीने देना नही चाहते हो .....उस दुनिया में कैसे कदम रखू एक खौफ से
भरी हुई है हर पल उन भेडियों की नजरों से बचना पड़ता है हर पल उन जालिमों का साया
पीछा करता है
तुम्हारी मोहब्बत का डर नही है डर तो उस बात
का है की अपनी इस मोहब्बत की निशानी को दुनिया में कैसे लाऊंगी , अपनी उस लाड़ली को
इन हैवानों से कब तक बचाउंगी ...उसे इस दुनिया में लाने से डर लगता है”
इस से आगे पड़ ना पाया ,खुद को खुद की नजरों
में गिरा हुआ पाया ऐसा लगा मानो उसकी इन बातों का क्या जबाब देता ...उसके लिए इस
बंद खिड़की को कैसे खोल पाता क्युकी में भी इसी भेडियों के समाज का हिस्सा हूँ
आज उस खिड़की खो खोलना चाहता हूँ उसे इस
दुनिया से मिलाना चाहता हूँ उसे बताना चाहता हूँ की एक दिन ये लोग जरूर बदलेंगे |
पर एक सवाल उस बंद खिड़की खोलने ने रोकता है
“क्या ये लोग
बदलेंगे ...?”
आपकी राय
जरूर.......”वो बंद खिड़की”
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-अनिल शर्मा
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